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Krsna Kirtana Songs est. 2001                                                                                                                                                 www.kksongs.org


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Song Name: Agharir Atha Sabhyaih

Official Name: Volume 2 Chapter 7 Verse 18

Author: Jiva Goswami

Book Name: Gopala Campu

Language: Sanskrit

 

A

 

LYRICS:

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अघारिरथ सभ्यैः सभान्तरुपवेशी

प्रजाभिरभियातः समेत्य शुभवेशी

अवादि पुनरेतद्रविस्च तव पादौ

विलोकयितुमगदिहोद्यदुपसादौ

 

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हसंस्तु हरिरूचे चायमहिमंशुः

परं तु बत सत्राजिदेष मणिजांशुः

तदेतदवकर्ण्य प्रजास्तु गतवत्यः

कृष्णमभि नागाद्यथाशु कृतहत्यः

 

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हरिस्तदतिगर्वप्रकाशकृतिकामः

नृपाय मणिमस्मिन्नथार्ददनु रामः

अदत्त मणिमेष प्रसेणमनु यर्हि

प्रहासमनुचक्रे मुरारिरपि तर्हि

 

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यदा तु समणिं तं जघान वनसिंहः

गभीरमनसासीत्तदा यदुसिंहः

तदीयजनसङ्घस्तदाथ मुरशत्रुम्

अपावददवेत्य प्रति स्वमपि शत्रुम्

 

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हरिस् तु पुरुसद्भिर्विमृग्य परिनष्टम्

ददर्श हययुक्तं तमेव हरिदष्टम्

मृगेन्द्रपदचिह्नैः प्रपद्य गिरिदेशम्

ददर्श सह सर्वैर्हतं मृगेशम्

 

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अथात्र पदमृक्षप्रभोस्च लुलोके

मणिं तु हि तच्च प्रतीतावति लोके

तदीयपदमृच्छन्जगाम गिरिरोकम्

विवेश तदमत्वाखिलस्य निजशोकम्

 

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प्रविश्य महर्क्षप्रकृष्टपुरुगामी

अपश्यदथ रत्नं तदीयहृतिकामी

यदेव किल धात्रीमुपेत्य सुकुमारः

विहारपदमगात्तदृक्षकुलसारः

 

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सरत्नमजिहीर्षन्मुरारिरिति धात्री

अकूजदतिभीता सकम्पातरगात्री

भल्लकुलमुख्यस्तदाथ हतबुद्धिः

बभूव सह तेन प्रकृष्य कृतबुद्धिः

 

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सहाष्टादशयुग्मांश तेन दिवसानाम्

व्यधात युगमुच्चैरनुद्यदवसानाम्

विहृत्य मुरवैरी तेन चिरकालम्

चकार करुणाक्तं स्वकीयमिव बालम्

 

(१०)

चाथ ह्र्दि शुद्धस्तमेत्य गतिसारम्

निवेद्य निजमगः प्रसन्नमकृतारम्

स्यमन्तमपि कन्यां ददे तु वरभक्त्या

जाम्बवदभिख्यः परं परशक्त्या

 

(११)

सकन्यमणिरागान्मुरारिरथ गेहम्

समर्प्य मणिमीशे ननन्द वलितेहम्

त्रपार्तमतिसत्राजिदत्र निजकन्याम्

मणिं मुरशत्रावदित्सदतिधन्याम्

 

(१२)

मुरारिरथ कन्यामियेष तु रत्नम्

सभक्तिरिह सा यत्परं तु कृतयत्नम्

द्रवन्तमथ सत्राजितस्तु कृतघातम्

स्यमन्तहरम् अक्रूरकादिमतयातम्

उपेत्य शतचापं जघान वनमाली

स्यमन्तमणिमक्रूरकाच्च मतिशाली

 

(१३)

समेत्य यदुवृन्दं प्रतोष्य बहुकर्मा

एष तव गोष्ठक्षितीश कृतशर्मा

व्रजस्य नयनालिं बिभर्ति जिततन्द्रः

सदापि परिपूर्णस्त्वदीयकुलचन्द्रः

 

UPDATED: October 16, 2015